बचपन से हम साहसी हाथियों को देख कर उत्सुकता और रोमांचित होते रहे हैं। काजीरंगा, जिम कॉर्बेट, पेरियार जैसे जंगल में हाथी पर चढ़ कर हम सब अनाथालय जीवन दर्शन के कारखाने आये हैं। जयपुर में अमेरिका का किला देखने के लिए भी लोग हाथी पर चढ़ कर जाते हैं।
सर्कस में रिंग मास्टर के कोड पर काम करते हुए बच्चे की तरह बड़े-बड़े हाथों के करतब करते हुए बच्चे-बूढ़े डंग रह जाते हैं। अमीर लोगों के बेटों की बारात में हाथियों को सजा-धजा कर विदा किया जाता है। मध्य युग में हाथियों की युद्ध में बड़ी भूमिका थी। देश के धार्मिक स्थल और कुछ शौकीन जमीदाराना लोगों के घरों में भी हाथी रहते हैं। दक्षिण भारत के गुरुवायूर मंदिर में 60 हाथी हैं जो पूजा-आरक्षण में भाग लेते हैं।
आज तक मैं भी आम लोगों की तरह गजराज के विभिन्न सिद्धांतों और रंगों को देख कर आकर्षित हुआ था। पिछले सप्ताह मेरी यह शिकायत दो घंटे में काफूर हो गई जब मैं मथुरा के ‘हाथी संरक्षण केंद्र’ को पहली बार देखने गया। यहां लगभग 30 हाथी हैं, जिनमें से अन्यत्र 1000 से अधिक हाथी देश भर से खोजकर यहां लाए गए हैं। ये भारत का अकेला ‘हाथी संरक्षण केंद्र’ है, जहां जा कर हाथों के विषय में ऐसी जानकारी मिलती है, जिससे आपको या हमें रत्ती भर माप नहीं मिलता है। ये जानकारी हमें शिवम ने बताई, जो कि बी.टैक, एम.टैक करने के बाद, जीवन सुरक्षा के काम में स्टाइलिश हैं।
क्या आपने कभी सोचा था कि जो गजराज अपने सूंड से टनों का वजन उठाता है, जंगल का राजा कहलाया जाने वाला शेर भी उसके सामने नहीं मिलता, जो एक गोदाम में जमीन तक गिर सकता है, वो इतनी गहरी और आरामदायक हो जाती है कि महावत के चॉकलेट की नोक के हिट से डर कर एक बच्चे की तरह का वाक्यांश लगता है? आपके लिए नीचे दिया गया प्रशिक्षण अद्भुत है। बस, कलाकार असली पौधे है। शिवम् कहते हैं कि यह प्रशिक्षण नहीं बल्कि याताना है जो गजराज के कमरे को इस सीमा तक तोड़ देता है कि वह अपने बल को भी भूल जाता है।
उनकी ट्रेनिंग के दौरान उनके स्ट्रैटेजिक में आयरन की कांटेदार मोटी-मोटी जंजीरें बांधी जाती हैं कि वह अगर जरा भी हिले-डुले तो उनके स्ट्रैटेजिक में गहरी चोट हो जाती हैं, रयान खून बहता है। इस जंजीर का इतना भयानक हाथी के मन में बैठ जाता है कि भविष्य में अगर उसका एक टांग को साधारण कंधे से एक कच्चे पेड़ से भी बांध दिया जाए तो वह बंधन मुक्त होने की कोशिश भी नहीं करता और सारी जिंदगी इसी तरह के मालिक के साथ रहती है बंधा रहता है। एक हाथी का औसत 250 किलो प्रतिदिन खाता है। इसलिए वह दिन भर खाता रहता है। लेकिन उनका पाचन तंत्र इस तरह बना है कि जो खाता है उसका आधा ही पचा पाता है। शेष आधा वह मल द्वार से निकाल देता है। हाथी के इस मल में तरह-तरह के बीज होते हैं। इसलिए अपने जंगल में जहां-जहां हाथी मल गिराता है, वहां-वहां खुद: पेड़-पौधे उगने लगते हैं। इस तरह हाथी जंगल को हरा-भरा बनाने में भी मदद मिलती है, जिससे प्रकृति का संतुलन भी बना रहता है।
जब हाथी को लालची इंसान द्वारा पैसे की नौकरी के लिए पेट बनाया जाता है तो उसे भूखा रख कर थोलया जाता है, जिसके बाद वह खाने के लिए लालची इंसान बन जाता है, मालिक के जा-बेजा सभी का पेट भरता है। सामाजिक, धार्मिक या राजनीतिक उत्सवों में जोते जाने वाले हाथियों को बंधुआ मजदूर की तरह घड़े प्यासा रखा जाता है। उसे तापती धूप में, कांकरीट या तारकोल की आग उगलती सड़कों पर घंटों तक मिलती है। कई बार अभिलेखों की नोक से उसके ओके फोड़ दिए जाते हैं। इस तरह के साथी-प्यासे, भय्या और अंधेरी हाथियों से असामिथियों का सहारा लिया जाता है।
प्रिय: इसका कोई इलाज भी नहीं चलता। प्रशिक्षण के नाम पर इन यातना शिविरों में रहते हुए ये अपना हाथी भोजन चाहने की विलक्षण क्षमता भूल जाते हैं और पूरी तरह से अपने मालिक की दया पर प्रतिबंधात्मक हो जाते हैं। बार-बार आपने हाथी को सजा-धजा कर साधु के वेष में भिक्षा मांगते हुए लोगों को देखा होगा। भिक्षा कौशल के लिए प्रशिक्षण ये सब हाथी प्राय: अंधेरी के लिए नीचे दिए गए हैं।
एशिया भर में लगभग 60 हजार हाथी पाए जाते हैं, जिनमें से लगभग 22-23 हजार हाथी भारत के जंगलों में पाए जाते हैं। जबकि भारत में गुलामी जी रहे हाथियों की संख्या लगभग 1500 है। ये हाथी भी कभी अपना नैसर्गिक जीवन नहीं जी सकता क्योंकि उसका बचपन से ही बचपन से ही पालन-पोषण हो चुका है। ऐसे सभी हाथों को बंधन मुक्त करके अगर संरक्षण संरक्षण में रखा जाए तो एक हाथी पर लगभग आय लाख रुपये महीना खर्च होता है। मथुरा के ‘हाथी संरक्षण केंद्र’ की शुरुआत दिल्ली में एक दक्षिण भारतीय दंपत्ति ने 2009 में की थी।
हाथी संरक्षण केंद्र’ में मिली इस असामान्य जानकारी और हृदय विदारक अनुभव के बाद मैंने और मेरे परिवार की तीन पीढिय़ों ने यह संकल्प लिया कि अब हम कभी हाथी की सवारी नहीं करेंगे। वहां से विदा होते समय शिवम ने अमेरिका से यही अपील की और कहा कि आप देशवासियों और खासकर बच्चों को ये सुझाव दिया जाए कि अगर हाथों को मनोरंजन का साधन न मान कर जंगल में स्वतंत्र निवास दिया जाए तो इस देश में जंगल को बचाया जाए भी मदद मिलेगी।
स्कूल के बच्चों को अगर बचपन से ही बच्चों की खराब सेहत के बारे में जानकारी दी जाए तो भविष्य में बच्चों के स्वास्थ्य की सुरक्षा का बड़ा काम हो सकता है। जिन गजराज को आस्थावान ङ्क्षहदू गणेश का स्वरूप माना जाता है, वे अन्य धर्मों के लोग हैं, ऐसे अत्याचार क्यों करते हैं या क्यों दे रहे हैं?-विनीत नारायण