एक छोटी सी, बच्चों के मनोरंजन एवं सांस्कृतिक मौसम की कहानियाँ

जनता से संबंध वेबडेस्क | सुरेश: “मैं भी बहुत बढ़िया हूँ, और पुराना काम धंधा कैसा चल रहा है?”

रमेश: “आपकी तो वही प्राइवेट सैक्टर में नौकरी चल रही है, तुम सुनाओ।”

सुरेश: “यार, मैं तो एक परफेक्ट बिग मैन हूं।” मौसम के हिसाब से बड़ा बदलाव है

रमेश: “क्या कहा, तुम बार-बार बड़ी चलती हो, मुझे कुछ समझ नहीं आया”।

सुरेश: “मैं समझाता हूँ, देखो भाई जब मई, जून की गर्मियों में भारी गर्मी होती है तो मैं फ़्रांसीसी का अंतिम भाग लगता हूँ,

और जब जनवरी की कड़कड़ाती-थरथराती बूंदें बंद हो जाती हैं तो गर्मा-गर्म चाय का स्टॉल लग जाता है।

जब बारिश की फ़ुहारें निकलती हैं, तो लगता है। कहीं भी बाढ़ आ जाती है तो नवें स्ट्राक्रैट्स कर देता हूं, और कहीं सूखा पैड जाता है तो पानी में डूब जाता हूं। जब भी चुनाव का मौसम आता है तो राजनीतिक विचारधारा वाले लोग रैली कर देते हैं, और जब क्रिकेट का मौसम आता है तो मैं पॉप कॉर्न रैली करने लगता हूं। जब क्राइम और घोटालो की खबरे क्रांति कर देती है, तो पेपर बिजनेस शुरू हो जाता है, और जब अपराधी नहीं जाते, तो इंडिया गेट पर मोमबत्तियां बिजनेस कर देता है। रामेश ने उन्हें झुका कर शत शत नमन किया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *