फॉलोअप डेस्कः
पूर्व काल से ही कॉकफाइट आदिवासियों के मनोरंजन का एक हिस्सा है। जिसे स्थानीय त्रैमासिक किसी भी शर्त पर छोड़ना नहीं चाहते हैं। लेकिन अब कोक बैटल जुआ खेल के रूप में तेजी से उभर रहा है। इसका क्रेज भी क्षेत्रीय सीमा में काफी अधिक है। हालांकि कॉक फाइट का कोई खास सीजन नहीं है। लेकिन यहां सबसे पहले वीकली एमईआरएस में मुर्गे लड़ाइयां होती हैं। जहां एक मुर्गे में लाखों रुपये तक की बोली लगती है। इसका क्रेज इतना अधिक है कि कॉकफाइटिंग के शौकीन लोगों की प्रतिष्ठा तक मुर्गे से जुड़ी होती है। अगर कोयले वाले को कोई कॉक पसंद करता है, तो दस हजार तक में भी पकड़ा जाता है। उसी के साथ कॉक को बड़े जतन से ऐसे पाला जाता है जैसे कि वह परिवार का कोई सदस्य हो। मुर्गे को हिंसक बनाने के लिए अंधे में मिलने वाली बूटी भी खिलाए जाते हैं।
मौत के साथ खेल खत्म हो जाता है
मुर्गों की लड़ाई के दौरान मुर्गे के पंजो मे हथियार बांधकर आप में लड़ते हैं। यह लड़ाई उसी समय खत्म हो जाती है, जब दो मुर्गों में से एक की मौत हो जाती है। मुर्गो के बीच मरने का यह खेल देखने के लिए हजारों लोगों की भीड़ उमड़ती है। कोयले के अखाड़े मे शेयर शेयर करने वाले लोगों के अपने नियम होते हैं। जो मुर्गों के संघर्ष मे अधिक स्टेक लगता है, उसे मुर्गा अखाड़ा मैदान में ही विशेष स्थान दिया जाता है। जबकि कम पैसा लगाने वाले लोगों को अखाड़ा मैदान में लगे हुए हैं तार के दावेदार होने का दावा करते हैं। मुर्गों की वरण यात्रा में ग्रामीण 10 रुपये से लेकर लाखों रुपये की बोली के दावेदार हैं।
मुर्गों को फाइटर कहा जाता है
मुर्गा लड़ाई से पहले मुर्गों के मालिक उन्हें पिलाकर मजबूत बनाते हैं। मुर्गों को भीड़ के बीच रहने की आदत लग सकती है। इसलिए पहले उन्हें बाजार में कई बार लाया जाता है। मुर्गों को मैदान में दिखाते से पहले वे बिना हथियार बांधे आपस मे लड़कर लड़ने की ट्रेनिंग देते हैं। इससे मुर्गे लड़ाई के दौरान घायल होने पर भी अंतिम सांस तक लड़ते रहते हैं।
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