बहुत कठिन होता है, कठिन समय में भी सहज रहना। सरल बने रहना उससे भी दुष्परिणाम है। विशेष रूप से जब पिता राजा हो। भाई हर बात को पसंद करते रहें और पत्नी का सुख उसी में हो कि वह वहीं रहे जहां पति की छाया रहे। राम कथा मनुष्य को सहज सिखाती है। ये भी सिखाती है कि समस्त धन संपदा, सुख, ऐश्वर्य आदि पाकर भी सरल बने रहना हो तो इसकी कुंजी है। कुंजी है, समदरसी इच्छा कछु नहीं, हरष सोक भय नहीं मन माहीं। लेकिन, सिनेमा को अब सरलता की मुंडेर भी हासिल नहीं होता। वह वही मुंडेर पर स्थिति खोआ बन चुका है, जो दादी बचपन में इस आसियान से दिन भर उड़ाया करती थीं कि शायद उसका कांव कांव करना किसी आने वाले की सूचना ही हो। निर्देशक ओम राउत की नई फिल्म ‘आदिपुरुष’ भी मुंदर पर से आने वाली ऐसी ही एक आवाज है। ये राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान और रावण की कहानी नहीं है, ये कहानी वे राघव, जानकी, शेष, बजरंग और लंकेश की बुनाई है। इंटरवल तक ही फिल्म सुंदरकांड को पार कर जाती है और उसके बाद का लंका कांड आपको किसी कांड से कम नहीं होता।
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आदिपुरुष समीक्षा
– फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
राम की पारंपरिक छवि नहीं
सिनेमाई छूट के सकल पौराणिक कथाएं कहने का इतिहास भारत में भी फिल्में उतनी ही पुरानी हैं। पहली राम कथा जब परदे पर उतरी तो राम और सीता दोनों की ही कहानी एक ही कलाकार ने निभाई। राम की सौधमता की झलक वहीं से निकली। तेलुगू में बनी रामकथा में राम मूछों के साथ नजर आए और अब तेलुगू के तथाकथित सुपर स्टार प्रभास जब उनकी नई फिल्म के साथ सिनेमा में आए तो वह मूनछों वाले राम ही बने हैं। राम को जिस दिन राजा बना था, उसका मुहूर्त नक्षत्रों की गणना करके निकाला गया। गुरु वशिष्ठ जैसे ज्ञानी ने ये मुहूर्त उद्घोषणा किया लेकिन वही मुहूर्त राजा दशरथ के मरण और राम के वनवास का कारण बना। राम कथा ऐसी ही छोटी छोटी सोच की कहानी है। ये निर्णययां कभी केवट प्रसंग में दिखते हैं, कभी शबरी के जूठे बेरों में तो कभी राम और हनुमान के मिलन में। दुश्मन सेना में आकर मरणासन्न की चिकित्सा करने वाले सुषेण वैद्य का प्रसंग विस्तार में देखें तो बड़े सामाजिक प्रभाव वाला है, लेकिन जिस सामाजिक समरसता का पाठ राम ने सिखाया, वे यहां उनकी पराक्रमी प्रचार के प्रपंच में खो गए हैं।
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पुरुषोत्तम के आदिपुरुष बनने की कहानी
फिल्म ‘आदिपुरुष’ में जब राम कहते हैं, ‘जानकी में मेरे प्राण बसते हैं लेकिन मर्यादा मुझे प्राणों से भी प्यारी है।’ तो बस ये एक लाइन का प्रसंग है राम को मर्यादा पुरुषोत्तम सिद्ध करने का जहां वह रावण से युद्ध करने के लिए अयोध्या की सेना नहीं चाहते। लेकिन, राम कथा के ऐसे ढेर प्रसंग हैं जो त्रेता युग के पुरुषोत्तम को आदिपुरुष बताते हैं कि फिल्म बनाने वालों का दावा मजबूत करने में उनकी मदद कर सकते थे। छोटा भाई जब हमेशा भाभी मां की सेवा और रक्षा में ही तत्पर रहता है तो ऐसे में बड़े भाई अपनी पत्नी के साथ रूमानी होने की समय भी सीमा। डाकिया मुश्किल है। लेकिन फिल्म टी सीरीज की है तो अरिजीत सिंह का गाना होना ही है और गाना होना है तो फिर कबीर सिंह हो या राघव फिल्म बनाने वालों का क्या फर्क है।
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बातचीत की अतिनाटकीयता की शिकार
संगीत और इसके गानों के साथ ही इसका संवाद भी फिल्म ‘आदिपुरुष’ की बड़ी असफलता है। इस तरह के लेखन में जो सहजता और सरलता विचार की आवश्यकता होगी, वह इसके संवाद में नहीं है। हालांकि, संवाद वाले शॉट मुंतशिर अब शुक्ल भी हो गए हैं लेकिन राम कथा की मानवता का ध्यान रखने में वे चूक गए हैं। फिल्म देखने के बाद ये भी समझ में आता है कि फिल्म के टीजर को लेकर मच हो हल्ले के बाद ओम राउत ने इसमें कोई खास जुड़ा नहीं है। टीजर में देखिए सारे ग्राफिक्स, सारे स्पेशल पेंच और सारे चरित्र हूब हू यहां पेश हैं। इस घुड़दौड़ फिल्म की जरूरत भी कहीं ज्यादा लंबी हो गई है।
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प्रभास, कृति सैनन और सन्नी सिंह स्टारर फिल्म ‘आदिपुरुष’ की तुलना इसकी पहली हिंदी में रिलीज हो चुकी है, खासकर रामानंद सागर की धारावाहिक ‘रामायण’ से जरूर होगी और जब ये तुलना होगी, तो सबसे पहली खामी जो इस फिल्म के लोग को दिखता है, वह फिल्म में जानकी बनीं कृति सैनन है। उनके चेहरे पर जो भी कृत्रिम प्रयोग हो जाते हैं, वे उनके चेहरे की सौन्दर्य हर ली है। फेफड़े और नाक उन्हें तीखे बनाए गए हैं। और, मिथिला की राजकुमारी के जिस सौंदर्य को देख राम पुष्प वाटिका में मोहित हो जाते हैं, उनकी छटा तक कृति सैनन की सुंदरता में नहीं दिखती। यही हाल प्रभास का है। हिंदी में शिरा केलकर की आवाज रिवरबैक वह राम जैसा आभास तो गए, पर उनके शरीर सौष्ठव में न राम के रूप में ओज है, न राम के रूप में तेज और न ही राम के रूप में प्रताप। वह पूरी फिल्म में ‘बाहुबली’ का तीसरा वर्जन ही जबरदस्त नजर आए।