Sahitya Aajtak: ‘मैंने चाय के ग्लास धोए, बेचने वाले तो…’, मनोरंजन ब्यापारी ने कसा तंज – Sahitya Aajtak kolkata manoranjan byapari pm narendra modi tea ntc

साहित्य आजतक के मंच पर टीएमसी नेता और लेखक मनोरंजन ब्यापारी ने अपने विचार रखे हैं. जिंदगी के संघर्ष, लेखक वाला जीवन और अलग तरह की राजनीति पर उनकी तरफ से विस्तार से बात की गई है. उन्होंने कार्यक्रम में अपने चिरपरिचित अंदाज में कई किस्से भी सुनाए और कुछ राजनीतिक हमले भी किए. उनका सबसे बड़ा सियासी हमला चाय बेचने को लेकर रहा. उन्होंने बिना नाम लिए एक बड़ा निशाना साधने की कोशिश की.

ब्यापारी का सियासी वार

कार्यक्रम में जब मनोरंजन ब्यापारी से उनके संघर्ष वाले दिनों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि मैंने चाय के गिलास धोए हैं, लेकिन चाय कभी नहीं बेची. चाय बेचने वाले तो आजकल देश बेच रहे हैं, हमने तो सिर्फ गिलास धोने का काम किया. हमने मजदूरी भी की, रिक्शा भी चलाया और नाइट गार्ड की ड्यूटी भी करनी पड़ी. ये जीवन की एक ऐसी सच्चाई है कि अगर आपके सामने कोई रोशनी नहीं होती, रास्ता दिखाने वाला नहीं होता तो आप रास्ता भटक जाते हैं. मैं भी भटक गया था, एक दिन पैर फिसला और जेल पहुंच गया.

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जेल यात्रा पर ब्यापारी का किस्सा

अब ब्यापारी की जेल यात्रा काफी संघर्ष वाली रही. उन्हें पढ़ना-लिखना कुछ नहीं आता था, शौक था, लेकिन संसाधन नहीं. ऐसे में उन्होंने जेल को ही अपी पाठशाला बनाया और वहां पर पढ़ना लिखना शुरू कर दिया. उस किस्से के बारे में वे कहते हैं कि जेल में मुझे एक शख्स मिला था. उसने कहा था कि जो केस लेकर मैं आया हूं, लंबे समय तक सजा काटनी पड़ेगी. मुझे बताया गया कि अगर पढ़ना लिखना आता है तो कुछ हल्का काम मिल सकता है, लेकिन अगर पढ़ना नहीं आता तो मजदूरी वाला काम करना पड़ेगा. मैं पढ़ना चाहता था, लेकिन कैसे कोई जानकरी नहीं थी. तब उस शख्स ने ही मुझे दिशा दिखाई और कहा कि इच्छा सबसे ज्यादा जरूरी रहती है. 

लेखक कैसे बन गए ब्यापारी?

मनोरंजन ब्यापारी ने जोर देकर कहा कि जेल से आने के बाद उनकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल गई और उनकी लेखक वाली जिंदगी का आगाज हो गया. उन्होंने बताया कि जब जेल के बाहर आए, पुस्तक पढ़ने की आदत पढ़ गई,जो पुस्तक मिलती पढ़ जाते थे. फिर एक बार एक पत्रिका ने मुझे कहा कि तुम अपनी आत्मकथा लिख दो, हम छाप देंगे. मैंने उनकी बात मान ली और लिख डाली. वो इतनी पसंद की गई कि उसके बाद एक रिक्शे वाले से पढ़े लिखे लोग मिलने आने लगे. वे कहने लगे कि मैं उनकी पत्रिका के लिए भी लिखना शुरू कर दूं. ऐसे करते-करते मेरा लिखने का काम शुरू हो गया और मैंने 27 से 28 किताबें लिख डालीं. जब उनसे सवाल पूछा गया कि बतौर लेखक या राजनेता, वे ज्यादा आनंद किस काम में लेते हैं, इस पर उन्होंने दिलचस्प जवाब दिया.

राजनेता या लेखक, किसमें ज्यादा आनंद?

उन्होंने कहा कि जब हम लेखक होते हैं तो लोगों के दर्द को बेचने का काम करते हैं. एक किस्सा बताते हुए वे कहते हैं कि एक बार मुझे और मेरे फोटोग्राफर को एक गरीब महिला मिली थी, उसके पास बच्चा भी था. किसी ने उनकी कोई मदद नहीं की. फिर वो महिला अपने बच्चे को दूध पिलाने लगी, मेरे फोटोग्राफर ने उसकी तस्वीर निकाल ली और जब एक पत्रिका ने ऐसी ही तस्वीर की डिमांड रख दी तो उसे 400 रुपये में बेच भी दिया. अब मैंने तब अपने फोटोग्राफर से कहा था कि जिस महिला की तुमने फोटो क्लिक की, उसे भी 200 रुपये मिलने चाहिए, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया. मुझे बहुत बुरा लगा और मैंने उस अनुभव पर ही एक कहानी लिख दी. उस कहानी के लिए फिर मुझे 200 रुपये मिल गए. अब बतौर लेखक तो हम सिर्फ दर्द बेचने का काम कर रहे हैं. लेकिन राजनीति में आने के बाद लोग उम्मीद करते हैं कि हम उनकी समस्या का समाधान दें. मैंने राजनीति में आने के बाद ये करने की पूरी कोशिश की है.

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