How is it possible to get rid of the captivity of cellphone | जानिए उन विशेषज्ञ से, जिन्होंने मोबाइल की लत छुड़वाने के लिए 2014 में शट क्लीनिक की नींव रख दी थी

डॉ. मनोज कुमार शर्मा3 घंटे पहले

  • कोई तकनीकी क्रांति हर सदी की पहचान बनती है। 21वीं सदी के पहले चौथाई भाग में मोबाइल को यह श्रेय दिया जा सकता था, लेकिन यहां तरक़्क़ी तो हुई, साथ ही कई ख़तरे भी उपजे हैं।

मोबाइल हमारी ज़िंदगी का अभिन्न अंग बन चुका है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता। काम, उत्पादकता, मनोरंजन और संवाद, सभी में इसकी भूमिका है। लेकिन कितनी और कैसी? आज जब आप स्व-विकास के जितने भी मंत्र या सुझाव पढ़ते हैं या किसी विशेषज्ञ से सुनते हैं, उनमें मोबाइल के इस्तेमाल की सीमा का ज़िक्र ज़रूर आता है।

सुधार के सुझावों में पहला नाम

भले ही बात दफ़्तर में काम के वक़्त की हो, भरपूर नींद लेने की या सुबह जल्दी उठने की या वाहन चलाने, सड़क पर चलने या किसी जगह पर क़तार में खड़े या बैठे होने की हो, मोबाइल को हम आड़े ले ही आते हैं। इसीलिए जब कहा जाता है कि अच्छी सेहत के लिए भरपूर नींद लें, तो साथ में यह भी कहते हैं कि सोने के एक घंटे पहले मोबाइल बंद कर दें।

बहुत चक्कर आ रहे हों, आंखों या कान में दर्द हो, तो भी डॉक्टर यह प्रश्न ज़रूर पूछते हैं कि मोबाइल का इस्तेमाल कितने घंटे करते हैं।

ध्यान में कमी या फोकस के बिगड़ने की समस्या की जड़ में भी अक्सर सेलफोन ही गुनहगार के रूप में मिलता है।

क्यों है मोबाइल की लत?

मनोरंजन के कई ज़रिए हैं, लेकिन अब हमारी अभिव्यक्ति बदल गई है। अब केवल कोई रंजन होते देखना ही ज़रूरी नहीं है, हर इंसान ख़ुद लघु फिल्म या वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डालकर, त्वरित सराहना या प्रशंसा ले सकता है।

वहीं वो दूसरों के किए कामों को भी देख और सराह सकता है। इससे इस बिरादरी में उसे बराबरी का अहसास मिलता है और जो सोशल मंचों पर सक्रिय नहीं हैं, उनके बीच ख़ास होने का। अभिव्यक्ति के इस बदलाव की ज़द में सब हैं- क्या बच्चे, क्या बड़े, क्या बुज़ुर्ग, क्या महिलाएं।

इसके भी कई आयाम हैं

  • संवाद के ज़रिए के रूप में बना फोन अब दुनिया जहान के इस्तेमालों को अपने में समाए है। सोशल नेटवर्किंग, गेमिंग, मनोरंजन के नाम पर फिल्मों से लेकर प्रतिबंधित कंटेंट तक सबकुछ हाथ में उपलब्ध है।
  • ख़ाली समय में मनोरंजन के लिए इसका कुछ समय के लिए सहारा लेना ठीक है, लेकिन गाहे-बगाहे उंगलियां चलाते रहना, लत की हद तक इसमें डूबना मुश्किलें पैदा करता ही है।
  • अनावश्यक रूप से यहां-वहां सर्फिंग करने से कभी वित्तीय झांसों में भी फंस जाते हैं। धोखाधड़ी के मामलों में अब मोबाइल कई रूपों में इस्तेमाल होने लगा है।
  • फबिंग भी आम है यानी जब बहुत सारे लोग साथ हैं, उनके बात करने के बजाय फोन पर जुटे रहना सामाजिक रिश्तों पर आघात है।
  • जहां बाहरी आवाज़ों को काटना हो, जैसे सड़क पर या दफ़्तर में भी, तो ईयर फोंस का इस्तेमाल आम है, जो सुनने की क्षमता पर असर डाल रहा है।
  • गेमिंग की लत छुड़वाने के लिए हर हफ़्ते लोग शट क्लीनिक पर आते हैं। किसी भी तरह की लत से जुड़े 20-22 लोग हर हफ़्ते यहां आते ही हैं।

सामाजिक व्यवहार पर असर पड़ा है

अक्सर माता-पिता शिकायत करते हैं कि बच्चे आजकल बात नहीं करते या उनमें संवाद का सलीक़ा नहीं है, और इसके लिए वे मोबाइल की लत को ज़िम्मेदार ठहराते हैं, तो उन्हें बच्चे को दिए माहौल पर भी नज़र डालनी होगी। यह सच है कि मोबाइल के अत्य​िधक उपयोग ने, चैटिंग के ज़रिए ही संवाद करने की आदत ने बच्चों के संवाद कौशल को कम किया है, उन्हें वास्तविक दुनिया से भी दूर किया है। लेकिन अगर अभिभावक चाहें, तो इसे नए सिरे से विकसित करने में बच्चों की मदद कर सकते हैं।

पारिवारिक गोष्ठियों में अगर बच्चों में फबिंग होती देखें, तो परिवार के बड़े दख़ल देकर बच्चों का ध्यान किसी सृजनात्मक काम की ओर मोड़ सकते हैं, जिससे बच्चों में मिलकर समय बिताने का रास्ता मिले। बिना फोन के दिन बिताने की पहल बड़े करें, तो बच्चे भी प्रेरित होंगे।

सेल की क़ैद से मुक्ति कैसे मिले?

सेलफोन की उपयोगिता और इससे मिलने वाली मदद से इंकार नहीं किया जा सकता। लेकिन इसके उपयोग में संतुलन बहुत ज़रूरी है। कहां और कितना उपयोग आपके लिए ‘उपयोगी’ है, यह तय करना व्यक्तिगत निर्णय है।

सेलफोन की क़ैद से निकलने के लिए प्रेरणा हर इंसान को ख़ुद ही तलाशनी होगी। इस उपयोगी उपकरण को अपनी मदद, तरक़्क़ी, लोगों से जुड़ाव और स्वस्थ मनोरंजन के लिए इस्तेमाल करना है या इसके अति उपयोग में फंसकर, ख़ुद को नुक़सान पहुंचाना है, यह निर्णय, इस सेलफोन की ही तरह, हमारे अपने हाथ में है।

(SHUT – Service for Healthy Use of Technology Nimhans – National Insttitute for mental Health and Neuroscience, Banglore)

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