‘मेरी मां तवायफ थी, और मैं इससे शर्मिंदा नहीं हूं’

छवि स्रोत, मनीष गायकवाड

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1990 के दशक में कोलकाता में ली गई रेखाबाई की तस्वीर

“मैं अंधेरे में नाचती थी। मैं कमरे में मोमबत्ती नाचती थी और रेस्तरां में नाचती थी। अंधेरे में मेरा भाग्य चमकने वाला था।”

साल 1962 की बात है. चीन और भारत के बीच सीमा विवाद के चलते जंग कूड़ा-कचरा था और देश में राष्ट्रीय स्वतंत्रता लागू की गई थी।

लगातार बजाते साइरन और कई दिनों तक काले लोगों की जिंदगी का हिस्सा बन गये थे. डॉक्टर उनके मन में बैठा था. भविष्य अंधकारमय लग रहा था.

लेकिन रेखाबाई ने कभी भी अपने डॉक्टर को अपनी किस्मत पर कब्ज़ा नहीं दिया। दूसरे तवायफों की तरह उन्होंने अपनी दुकान खूबसूरत नहीं की, वो तैयार होकर, रात में आलीशान डिजाइन अपने कोठे पर आने वाले मर्दों के लिए नाचती रही।

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