सिल्वर स्क्रीन: मनोरंजन की पोटली में ‘ओटी’ की नई घुट्टी!

सिल्वर स्क्रीन: मनोरंजन की पोटली में ‘ओटी’ की नई घुट्टी!

परिवर्तन संसार का नियम है और यह नियम मनुष्य का सर्वव्यापी निर्वाह है क्योंकि परिवर्तन के माध्यम से ही नवीनता का जन्म होता है। पेड़ के पुराने किलों का ठूंठ पर यही बदलाव कोमल कोपलों को पल्लवित करता है। लोकरंजन में भी यही बदलाव नई कलाओं नई शैली को जन्म देता है। जब नाटक नौटंकी का दौर शुरू हुआ, तब भी यही सवाल उठाया गया कि इसके बाद क्या हुआ! तब ऐसा प्रतीत होता था कि लोकरागं की यही अंतिम सीमा रेखा है। लेकिन, नौटंकी के बाद थिएटर का युग आया, तब फिर यही सवाल उठाओ ‘इसके बाद क्या!’ तब जन्म लिया सिनेमा ने जिसका साम्राज्य सौ बार से अब तक चला। जब लगा कि मनोरंजन की दुनिया में सिनेमा अमर बूटी आया है और उसके अश्वमेध रथ को कभी कोई रोक नहीं लगाएगा! तब आया इडियट बॉक्स यानी टीवी, जिसे सिनेमा का बच्चा ही माना गया।

एक समय के बाद इस बच्चे का किरदार उसके पिता से बड़ा हो गया तो माने जाने लगा कि सैटेलाइट का संसार और टीवी की दुनिया ही मनोरंजन का पर्यवेक्षण या स्थिरता है। तब इसके बाद क्या सवाल पूछा गया। इसके बाद आया मनोरंजन का टीवी-टवेंटी यानी फिल्मों का युग, जिसे कोरोना काल ने शेयरों पर ला दिया। अल्पकाल में स्टूडियो ने सिनेमा और टीवी के मैदान की सीमा रेखा को तैयार किया। अब परिवर्तन के सिद्धांत के हिसाब-किताब से फिर यह प्रश्न उठता है कि लाज़मी हो गया कि पुस्तकालय के बाद क्या! लेकिन, मान लीजिए फिलहाल है तो ‘इसके बाद क्या’ वाला प्रश्न गौण ही हो गया!

पौराणिक कथाओं की दुनिया में कुछ ही प्राचीन में बड़े और छोटे परदे से भी बड़े हो गए। यह परदा अच्छा छोटा ही है, दर्शकों पर यह प्रभावशाली है। जबकि, आज़ादी से पहले और बाद के कई प्राचीन तक मनोरंजन का माध्यम सिनेमा ही था! जब भी मनोरंजन का एहसास हुआ तो लोगों के कदम सिनेमा की तरफ मुड़ गए। इसके बाद टेलीविजन का दौर आया, जिसने 80 के दशक के मध्य से अपने पंख फैलाए और घर के सदस्यों को एक कोने में समेट दिया। इसका मनोरंजन भी अलग ही था जो ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ जैसे सीरियलों से लोगों के सिर हिलाने लगा। यह जादू ऐसा था जिसने सुपरस्टार को खाली कर दिया। 90 के दशक में एक समय ऐसा भी आया, जब फिल्मकारों ने इस छोटी परेड के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था।

टीवी को कभी कोई चैलेंज दे गया, ऐसा कोई आसरा नहीं था! पर, कोरोना के ट्रॉली टूर ने जब मनोरंजन के सारे दरवाजे बंद कर दिए तो मजाक के रूप में नया विकल्प सामने आया! क्योंकि, सिनेमाघर बंद थे, टीवी सीरियलों की शूटिंग रुकी हुई थी और कलाकारों ने अपने मोबाइल में समय काटने के लिए अपने मोबाइल में वेब सीरीज देखना शुरू कर दिया था। धीरे-धीरे-धीरे-धीरे फिल्में देखने वाले दर्शकों को वेब सीरीज की ऐसी हरकतें देखने को मिलीं कि अब सुपरस्टार की भीड़ उमड़ पड़ी। टीवी के सीरियल को लोगों ने देखा ही बंद कर दिया। आज गिनती के ऐसे टीवी चैनल हैं जिन पर सीरियल आते हैं।

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सिनेमा का अपना सौ साल का लंबा इतिहास रहा है। मूक फ़िल्मों से आज की फ़िल्मों ने समय के अस्थिर दौर को देखा है। उनके बाद टीवी सीरियल्स में भी फैमिली बदलाव का चेहरा नजर आया। लेकिन, फोटोग्राफर ने बहुत कम समय में दर्शकों को अपने आगोश में ले लिया। इसका सबसे बड़ा कारण है हाथ में थमा नन्हा सा मोबाइल। इस उपकरण में इतनी कुछ दूरी आ गई, शायद ये बात किसी ने नहीं सोची होगी। दुनिया जब डिजिटल हुई तो घर के कोने में रखा बड़ा सा पांच पांच इंच का मोबाइल समा गया! टीवी के दर्शक मोबाइल तक पहुंच गए। लेकिन, डिजिटल का अपना अलग आनंद है। पसंदीदा से मनोरंजन का नया माध्यम ‘वेब सीरीज!’ अब कभी भी, कहीं भी वेब सीरीज के जरिए मोबाइल फोन या लैपटॉप देख सकते हैं। बड़े और छोटे परदे के बीच मनोरंजन का ये नया माध्यम मोबाइल की स्क्रीन पर ऐसा दिखा कि उन्होंने सारे परदे को छोटा कर दिया।

वेब सीरीज पर सीरियल नंबर छोटे-छोटे एपिसोड, जो ऑनलाइन उपलब्ध हैं, उन्हें मोबाइल, टैबलेट या कंप्यूटर पर देखा जा सकता है। जब से स्मार्ट टीवी आया, तब भी हंगामा बड़ा हो गया। ये वे सीरीज हैं जो आज के युवाओं को बेहद पसंद हैं। इसका चलन इतनी तेजी से बढ़ा कि टीवी और फिल्मों के कई बड़े प्रोडक्शन हाउस भी अब वेब सीरीज बनाने में लग गए। हैरानी की बात तो ये है कि कल तक सोचा था कि फ्लोरिडा के लिए अलग-अलग फिल्में बनूंगी। इससे भी आगे का चमत्कार तो ये है कि अब कुछ फिल्में फिल्म पर पहले आई हैं, फिर से फिल्म का रहस्य सामने आया है।

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हमारे यहां सिनेमा ने दर्शकों को बांधे रखा। लेकिन, अब वो खुमारी भी उतर गई। अब तो फिल्में बनाने वाले भी आशंकित रहते हैं कि दर्शकों को उनकी फिल्म पसंद आएगी या नहीं! जबकि, दोस्ती के साथ ये खतरनाक बनिस्बत कम होता है। क्योंकि, मैका इतना बड़ा होता है कि दुनिया के किस कोने में कौन से दर्शक इसे पसंद करते हैं, कहा नहीं जा सकता! वेब सीरीज को फ्लॉप का खतरा भी नहीं होता। ये कालजयी भी होती है। क्योंकि, इसे कभी भी अपनी सुविधा और समय से देखा जा सकता है, जो सिनेमा और टीवी में होता है। मनोरंजन के इस नए माध्यम की लोकप्रियता का कारण भी यही है। ये समय की बाउंडता से पूरी तरह मुक्त है। वेब सीरीज का सागौजी युवा केंद्रबिंदु है, इसलिए इसकी भाषा सबसे ज्यादा खुलती है। इसलिए इसे पारिवारिक मनोरंजन भी नहीं कहा जाता। मोबाइल पर वीडियो से यह माध्यम निजी मनोरंजन से भरपूर है। दर्शक अपनी पसंद से बजट का चुनाव कर सकते हैं।

इसे फिल्म या टीवी का विकल्प भी बेकार होगा। दरअसल वेब सीरीज का असली मुकाबला तो आपके पास है। यदि दर्शकों को बेहतर सामग्री मिलती रहे, तो वे इसमें शामिल हो जायेंगे। अगर ऐसा नहीं होता तो वेब सीरीज के दर्शकों के दिमाग से उतरने में देर नहीं लगती। अभी तो ज्यादातर वेब सीरीज युवाओं को ध्यान में रखकर बनाई जा रही हैं। लेकिन, भविष्य में ये दौर बदलेगा और हर उम्र को ध्यान में रखकर काम करना होगा। हमारी यहां वेब सीरीज का ये शुरुआती दौर और तीन सब्जेक्ट युवाओं तक सीमित हैं। उदाहरण के तौर पर पसंद करने वालों में वे लोग भी शामिल हैं जिनमें क्राइम से जुड़ी कहानियां और भाषा का खुलापन रास शामिल है। इसका कारण यह है कि ज्यादातर वेब सीरीज रहस्य, रोमांच और अपराध पर केंद्रित हैं। इनमें से कई की भाषा भी वल्गर होती है और सीन भी! लेकिन, उम्मीद है कि भविष्य में वेब सीरीज में हर किसी के लिए कुछ न कुछ होगा।

अमेरिका में वेब सीरीज का चलन 2003 से है। लेकिन, हमारी यहीं शुरुआत यहीं से कही जा सकती है। दर्शकों के लिए इसमें भरपूर मनोरंजन है, तो प्रोडक्शन हाउस के लिए पैसा भी! इसके प्रोटोटाइप का आकलन इसी तरह किया जा सकता है कि यशराज, इरोज-नाउ और बालाजी जैसी कई बड़ी कंपनियां हाउस वेब सीरीज बना रही हैं। कई तो फिल्म और टीवी के क्वेश्चन को सीरीज लेकर मोबाइल पर ले आई! अमेरिकन कॅमर्स में फिल्म और सीरियल नामावली वाली कंपनी ने अनुराग कश्यप की ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ को भी वेब सीरीज में शामिल कर अंतरराष्ट्रीय दर्शकों तक पहुंचाया। ‘यशराज’ भी इसी तरह की फिल्मों की तैयारी में है। अब तो फिल्म रिलीज के साथ ही इसके स्टूडियो राइट्स भी खत्म होने लगें।

इसका मतलब यह भी हो रहा है कि वेब सीरीज की पहुंच बहुत तेजी से बढ़ रही है, क्योंकि कई बिजनेस बिजनेस की संभावनाएं तलाश रही हैं। इसे वेब क्रांति का नाम भी दिया जा रहा है। जैसे-जैसे वेब सीरीज के दर्शक बढ़ेंगे, उतनी ही तेजी से इसका बिजनेस बढ़ेगा। डिजिटल विज्ञापन का बाजार करीब 5 हजार करोड़ का है। वेब सीरीज को मिलने वाले सिद्धांत से अब ये बाजार तेजी से बढ़ रहा है। युवा दर्शकों को हमेशा कुछ न कुछ नया चाहिए और वेब सीरीज में वो उन्हें फ्री मिल रहा है। स्वाभाविक है कि इसके दर्शक बढ़ेंगे। लेकिन, वेब सीरीज के कंटेंट को हमेशा ताजा बनाए रखना भी जरूरी है। इसलिए कि वेब या मोबाइल पर दर्शकों का पूरा नियंत्रण होता है। वह मॉल से अपना मनोरंजन चुन सकती है। अगर नयापन जरूरी नहीं है तो वो मनोरंजन का कोई विकल्प नहीं अपनाएगा। क्योंकि, मनोरंजन के विकल्प हमेशा बने रहते हैं, इसलिए हमेशा इंतजार करते हैं कि इसके बाद क्या?


राहुल पाल

चार दशक से अंग्रेजी पत्रकारिता से जुड़े वाइरल पाल ने देशों के सभी प्रतिष्ठित तीर्थों और अभिलेखों में कई विषयों पर अपनी लिपि संग्रह प्रस्तुत किया है। लेकिन, राजनीति और फिल्म पर लेखन उनके प्रिय विषय हैं। दो दशक से अधिक समय तक ‘नईदुनिया’ में पत्रकारिता की, लंबे समय तक ‘चुनाव डेस्क’ के प्रभारी रहे। वे ‘जनसत्ता’ (मुंबई) में भी सभी संस्करणों के लिए फिल्म/टीवी पेज के प्रभारी के रूप में काम कर रहे हैं। फिलहाल ‘सुबह सवेरे’ इंदौर संस्करण के स्थानीय संपादक हैं।

संपर्क: 9755499919
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